शोधकर्ताओं ने रोबोटों के लिए एक "न्यूरोमॉर्फिक" कृत्रिम त्वचा विकसित की है, जो संवेदी जानकारी को संसाधित करने की मानव तंत्रिका तंत्र की विधि की नकल करती है। कृत्रिम त्वचा स्पाइकिंग सर्किटरी का उपयोग करती है, जो इस बात से प्रेरणा लेती है कि संवेदी न्यूरॉन्स से संकेत शरीर में कैसे प्रसारित और एकीकृत होते हैं। यह विकास रोबोटों के लिए अधिक ऊर्जा-कुशल एआई-आधारित नियंत्रण सॉफ्टवेयर का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
मानव तंत्रिका तंत्र न्यूरॉन्स के बीच प्रेषित गतिविधि स्पाइक्स की एक जटिल प्रणाली के माध्यम से संवेदी जानकारी को ट्रैक करने में उत्कृष्ट है। नई कृत्रिम त्वचा इस प्रक्रिया को दोहराती है, गर्मी, ठंड, दबाव और दर्द जैसी विभिन्न संवेदनाओं के लिए विशेष सेंसर का उपयोग करती है। ये सेंसर एक ऐसे सिस्टम में फीड करते हैं जो रीढ़ की हड्डी की नकल करता है, जहाँ प्रारंभिक प्रसंस्करण होता है।
जबकि सिस्टम में कुछ गैर-तंत्रिका घटक शामिल हैं, यह स्पाइकिंग संकेतों का उपयोग करके तंत्रिका नेटवर्क चलाने के लिए डिज़ाइन किए गए मौजूदा चिप्स का लाभ उठाता है। यह ऊर्जा-कुशल हार्डवेयर के साथ निर्बाध एकीकरण की अनुमति देता है, जिससे एआई-संचालित नियंत्रण प्रणालियों का मार्ग प्रशस्त होता है।
इस तकनीक के निहितार्थ रोबोटिक्स, कृत्रिम अंग और मानव-कंप्यूटर इंटरैक्शन सहित विभिन्न क्षेत्रों तक फैले हुए हैं। मानव तंत्रिका तंत्र की नकल करके, रोबोट अपने पर्यावरण के साथ अधिक सूक्ष्म और प्रतिक्रियाशील बातचीत प्राप्त कर सकते हैं। इससे विनिर्माण, स्वास्थ्य सेवा और अन्वेषण जैसे क्षेत्रों में प्रगति हो सकती है।
न्यूरोमॉर्फिक कृत्रिम त्वचा का विकास ऐसे रोबोट बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जो अपने परिवेश को अधिक मानवीय तरीके से समझ और प्रतिक्रिया कर सकते हैं। इस क्षेत्र में आगे अनुसंधान और विकास से और भी अधिक परिष्कृत और बहुमुखी रोबोटिक सिस्टम बन सकते हैं।
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