अल्जीरिया की संसद ने सर्वसम्मति से फ्रांस के उपनिवेशवाद को अपराध घोषित करने वाला कानून पारित किया
दोनों देशों के बीच तनाव के एक महत्वपूर्ण वृद्धि के रूप में देखे जाने वाले एक कदम में, अल्जीरिया की संसद ने सर्वसम्मति से एक कानून पारित किया है जो उत्तरी अफ्रीकी राज्य पर फ्रांस के उपनिवेशवाद को अपराध घोषित करता है। यह कानून, जिसे बुधवार को अनुमोदित किया गया था, फ्रांस से माफी और अपने उपनिवेशवादी शासन के लिए मुआवजे की भी मांग करता है, जो 1830 से 1962 तक चला था।
कानून के अनुसार, अल्जीरिया पर फ्रांस का उपनिवेशवाद बड़े पैमाने पर हत्याओं, बड़े पैमाने पर निर्वासन और एक खूनी स्वतंत्रता संग्राम में समाप्त हुआ था। यह कानून उपनिवेशवाद के महिमामंडन को भी अपराध बनाता है, जो अल्जीरिया में फ्रांस के उपनिवेशवादी अतीत के महिमामंडन को रोकने के लिए एक कदम है।
यह वोट दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण कूटनीतिक संबंधों का नवीनतम संकेत है, जिसमें कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि वे 63 वर्ष पूर्व अल्जीरिया की स्वतंत्रता के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर हैं। कानून के पारित होने का अल्जीरियाई लोगों से व्यापक स्वागत किया गया है, जो इसे देश के दर्दनाक इतिहास की लंबे समय से प्रतीक्षित मान्यता के रूप में देखते हैं।
"यह कानून फ्रांस द्वारा अपने उपनिवेशवादी शासन के दौरान हम पर किए गए दुख और अन्याय को स्वीकार करने में एक बड़ा कदम है," एक अल्जीरियाई संसद सदस्य ने कहा, जिन्होंने नाम न छापने की इच्छा व्यक्त की। "हमें उम्मीद है कि फ्रांस इस अवसर का उपयोग माफी मांगने और हुए नुकसान के लिए मुआवजा देने के लिए करेगा।"
अल्जीरिया में फ्रांस का उपनिवेशवादी शासन मानवाधिकारों के व्यापक उल्लंघनों से चिह्नित था, जिनमें बड़े पैमाने पर हत्याएं और मजबूर श्रम शामिल थे। अनुमानों के अनुसार, 1915 और 1950 के बीच, फ्रांस ने अल्जीरिया के 1 मिलियन से अधिक लोगों को फ्रांस में एकाग्रता शिविरों में निर्वासित किया, जहां कई कठोर परिस्थितियों और दुर्व्यवहार से मर गए।
कानून के पारित होने का मानवाधिकार समूहों ने स्वागत किया है, जो इसे न्याय और जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखते हैं। "यह कानून अल्जीरिया के लोगों के लिए एक बड़ी जीत है, जिन्होंने लंबे समय से फ्रांस द्वारा किए गए नुकसान के लिए मान्यता और मुआवजे की मांग की है," एमनेस्टी इंटरनेशनल के एक प्रवक्ता ने कहा।
कानून के फ्रांस-अल्जीरिया संबंधों पर परिणाम अभी तक स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह दोनों देशों के बीच और अधिक तनाव का कारण बन सकता है। "यह कानून फ्रांस और अल्जीरिया के बीच तनाव का एक महत्वपूर्ण वृद्धि है, और यह देखना बाकी है कि फ्रांस कैसे प्रतिक्रिया देगा," एक फ्रांसीसी विदेश नीति विशेषज्ञ ने कहा, जिन्होंने नाम न छापने की इच्छा व्यक्त की।
कानून के पारित होने के समय फ्रांस पहले से ही अपने उपनिवेशवादी युग के अभिलेखागार के प्रबंधन के लिए आलोचना का सामना कर रहा है, जिसमें फ्रांस के उपनिवेशवादी अतीत के बारे में संवेदनशील जानकारी होने का कहना है। 2020 में, फ्रांस ने 24 अल्जीरियाई प्रतिरोध सेनानियों के अवशेष वापस किए, जिसे पुनर्मिलन की दिशा में एक छोटा सा कदम माना गया था।
जैसे ही स्थिति आगे बढ़ रही है, एक बात स्पष्ट है: इस कानून के पारित होने से फ्रांस के साथ अल्जीरिया के संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है, और यह देखना बाकी है कि दोनों देश आगे कैसे बढ़ेंगे।
पृष्ठभूमि:
फ्रांस का अल्जीरिया पर उपनिवेशवाद 1830 में शुरू हुआ और 1962 में अल्जीरिया की स्वतंत्रता तक चला। उपनिवेशवादी काल मानवाधिकारों के व्यापक उल्लंघनों से चिह्नित था, जिनमें बड़े पैमाने पर हत्याएं, मजबूर श्रम और निर्वासन शामिल थे। अनुमानों के अनुसार, 1915 और 1950 के बीच, फ्रांस ने अल्जीरिया के 1 मिलियन से अधिक लोगों को फ्रांस में एकाग्रता शिविरों में निर्वासित किया, जहां कई कठोर परिस्थितियों और दुर्व्यवहार से मर गए।
हाल के वर्षों में, फ्रांस और अल्जीरिया के बीच तनाव बढ़ रहे हैं, अल्जीरिया ने फ्रांस पर अपने उपनिवेशवादी अतीत को स्वीकार करने और मुआवजा देने में विफल रहने का आरोप लगाया है। कानून के पारित होने को इन तनावों का एक महत्वपूर्ण वृद्धि माना जा रहा है, और यह देखना बाकी है कि फ्रांस कैसे प्रतिक्रिया देगा।
अगले कदम:
कानून के फ्रांस-अल्जीरिया संबंधों पर परिणाम अभी तक स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह दोनों देशों के बीच और अधिक तनाव का कारण बन सकता है। फ्रांसीसी सरकार ने अभी तक कानून के पारित होने पर टिप्पणी नहीं की है, लेकिन यह उम्मीद की जा रही है कि वह आगामी दिनों में प्रतिक्रिया देगी। जैसे ही स्थिति आगे बढ़ रही है, एक बात स्पष्ट है: इस कानून के पारित होने से फ्रांस के साथ अल्जीरिया के संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है, और यह देखना बाकी है कि दोनों देश आगे कैसे बढ़ेंगे।
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